Bahadur Shah Zafar: भारत के आखिरी मुग़ल बादशाह की कब्र को अंग्रेज अफसरों ने क्यों छुपाया? जिसका 132 साल बाद चला पता

भा’रत के आ”खिरी मुग़’ल बाद’शाह बहा’दुर शा’ह ज’फ’र का इं’ते’क़ाल 6 नवम्बर 1862 को ल’कवे का ती’सरा दौरा प’ड़ा और उन’की त’बि’यत बिग’ड़ती चली गई। उनका 7 नवम्बर को सुबह 5 बजे इंते’क़ा’ल हुआ। ब्रि’गेडि’यर जस’बीर सिंह अपनी किताब कॉम्बेट डायरी एन इलस्ट्रेटे हिस्ट्री ऑफ़ ओ’परे’शन कं’ड’क्टेड बाय

फाॅर्स बटालियन द कु’माऊ रेजिमेंट 1788 टू 1974 में लिखतेहुए कहते है कि इंते’क़ा’ल के बाद बहा’दुर शा’ह को उसी शाम 4 बजे द’फ’ना दिया गया। वो आगे लि’खते है कि रंगून के जिस घर में बहादुर जफर को कै’द कर रखा था उसी के पीछे वाले हिस्से में उन्हें दफ’ना’या गया था। और उनकी क’ब्र को स’म’तल कर दिया गया था।

ब्रिटेन के अधिकारियों ने क’ब्र को समतल इसलिए किया ताकि कोई भी उनकी क’ब्र को न’हीं प’हचान सके। उस समय जा’फर के अंति’म सं’स्का’र की देखरेख कर रहे अधिकारी डे’विस ने भी माना था कि बा’दशाह को द’फना’ते वक़्त करीब 100 लोग वहां पर मौजूद थे। उन्होंने कहा कि व’हां पर वै’सी की भी’ड़ थी जैसे

घुड़’दौ’ड़ दे’खने वा’ली होती है। जफर की मौ’त के बाद साल 1991 यानी 132 साल बाद एक स्मा’र’क कक्ष कीआधा’रशि’ल की खु’दा’ई होनी थी। उसी खुदा’ई के दौरा’न एक भू’मि’गत क’ब्र के होने का पता चला। बा’दशा’ह जफ’र की नि’शा’नी और अ’वशे’ष मिले फिर उस’की जाँ’च की गई और बाद में पुष्टि हुई यह क’ब्र बा’दशा’ह जा’फ’र की है।

ब’हादुर शा’ह ज’फर देश के स्व’तंत्र’ता संग्रा’म के नायक है जिसमे हम अंग्रे”जो से भ’ले हा’र मिली हो लेकिन वो आख्रि’री स’मय तक अं’ग्रेजो के आ’गे न’हीं झु’के और उन्होंने अं’ग्रे’जो की प’क’ड़ में आने से पहले हिं’दु’ओ और मु’स’ल’मानों’ क्रां’ति’कारि’यों ने उसे एकजुट होकर ल’ड़ा था और अपनी एक’ता की श’क्ति को अं’ग्रे’जो में भी इसके खिला’फ खो’फ पैदा किया था।

भारत देश के आ’खरी मु’गल बहा’दुर शा’ह जफ’र का जिक्र आते ही उनकी उर्दू शाय’री और हिंदु’स्तान से उनकी मोहब्ब’त के लिए भी या’द किया जाता है। लेकिन हम भू’ल जाते है कि इन्होंने साल 1857 की क्रांति में वि’द्रो’हियों और देश’ के सभी रा’जाओं का एक सम्रा’ट के तौर पर भी साथ दिया था। इसके लिए भी इनको का’फी ज्या’दा और म’हंगी की’मत चुकानी भी पड़ी थीं।’

मेरठ से जब अंग्रे’जो के खिला’फ साल 1857 की क्रां’ति शुरू हुई तब उन्होंने अंग्रे’जो के आ’क्र’मण से आक्रो’शि’त वि’द्रो’ही सै’नि’क और रा’जा महा’रा’जाओं ने एक’जुट होना शुरू किया जब उन्हें अपने क्रांति को एक दिशा देने के लिए एक कें’द्रीय नेतृत्व की जरूरत भी पड़ी थी। तब उन्होंने ब’हादुर ‘शा’ह ज’फर से भी

बात की और बहा’दुर शाह जफर ने भी अं’ग्रे’जो के खि’ला’फ ल’ड़ा’ई में ने’तृत्व को स्वी’कार भी किया था।भारत के आखि’री शास’क ब’हादुर शा’ह ज’फर को 6 निवेम्बर 1862 को ल’कवे का ती’सरा दौरा भी ‘प’ड़ा। 7 नवंबर की सुबह 5 बजे उनका इं’तका’ल भी हो गया। बता दे कि सदियों तक ‘भा’रत मे राज करने वाले

मुग’ल ब’हा’दुर के वंश’जों में आज भी कई वं’श’ज झु’ग्गी झोपड़ि’यों में रहते है। बहा’दुर की पौत्र वधु आज भी रो’जम’र्रा की जिंद’गी में काम करती है और अपना गुजा’रा भी च’ला’ती है। उनके प’ति का साल 1980 में इंत’का’ल हो ग’या था।

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