मुहर्रम पर पूर्व IPS ध्रुव गुप्त का लेख “इस्लाम जिन्दा होता है हर कर्बला के बाद”

इस्ला’मि’क साल के मुताबिक बीते दिनों से ही नए साल की शुरुआत हो गई है। पहला महीने मोह’र्रम का होता है। अ’ल्ला’ह के र’सू’ल स’ल्ला’हु अ’लैहि’ व’स’ल्लम ने इस महीने को अ’ल्ला’ह का म’हीना कहा है। मोह’र्रम के महीने की 10 तारीख को योमे आ’शूरा कहा जाता है। इस दिन रो’जे रखे जाते है और इमा’म हु’सैन की याद में जि’या’रत की जाती है।

यौ’मे आशू’रा का बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है। इस महीने की फ’जीलत भी बहुत हीं ज्यादा है। मोह’र्रम का जु’लूस हर शहर में निकाला जाता है।बता दे कि मोहर्रम के बारे में पूर्व IPS ध्रुव गुप्त ने लिखा है कि इ’माम हु’सैन ने अपने दोस्तो के साथ य’जीद के सामने स’र को क’टा दिया था। यह एक इंसा’न के लिए मिसाल नही है बल्कि हर मान’वता के लिए एक मि’साल है।

imam hussain

हुसै’न सिर्फ़ मुस’ल’मा’नो के लिए न’ही है बल्कि हम सबके लिए है। पूर्व IPS ने आगे कहा कि इ’स्ला’म जिं’दा होता है हर क’र्ब’ला के बाद। इ’स्ला’म के प्र’सार के बारे में एके सवाल के जबाव में म’हात्मा गां’धी ने कहा था कि मेरा विश्वास है कि इ’स्ला’म का वि’स्तार उनके त’ल’वार’ की जो’र पर ‘न’ही ब’ल्कि

इमा’म हु’सैन के सर्वो’च्च ब’लि’दान की वजह से हुआ है। नेल्स’न मं’डेला ने अपने एक सं’स्म’र’ण में भी लिखा था कि मैं कै’द में 20 साल से ज्यादा वक्त गुज’र’ चुका हूं। एक रा’त मुझे ख्या’ल आया कि मैं सर’कार की श’र्तों को मा’न’कर उसके आगे

आ’त्म’स’मर्प’ण कर या’त’ना से मु’क्त हो जाउ लेकिन तभी मुझे इ’मा’म हु’सै’न और क’र्ब’ला की याद आई। उनकी याद ने मुझे इतनी ज्यादा रूहानी’ ”ता’क’त दी कि मैं उन परि’स्थिति’यों में भी स्व’तं”त्रता के अ’धि’कार के लिए ख’ड़ा हो सका।

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