कबाब का नाम सुनते ही मुंह मे पानी आ जाता है। यह एक ऐसी डिश है जो अलग अलग तरीको से भी बनाई जाती है। जिसके एक ही नाम नही बल्कि अलग अलग नाम भी है। जैसे भारत मे शाही कबाब, सीख कबाब, हरियालीकबाब, टिक्का कबाब काफी पसंद भी किए जाते है।
कबाब उतना मशहूर हुआ है कि शाहकरियो ने भी अपने लिए वेज कबा’ब का तरीका भी ढूढ निकला। चलिए आज हम उन इतिहास कब पन्नो को भीपलट है जब कबाब खानाबदोशो और जंगी सिपाहियों से होता हुआ शाही दरतरख्यान तक भी पहुँचा है। भारत मे मुगलों के शाहसनकल के दौरान सबसे पहले ही
भारतीयों ने कबाब का स्वाद भी चखा था। उनके लिए इस सफर में खाना बनना भी बहुत आसान था। वही उनकी सेहत के लिए भी काफी ज्यादा सेहतमंद था। पहले सैनिकऔर खाना बदोश सफर के दौरान भुने हुए मास के टुकड़े को अपने साथ लेकर भी चलते थे। भूख लगने पर वो उस मास के टुकड़े को अपनी
तलवार में लगाकर आग में भूनते थे। उपरसे पिसा हुआ म’साला डालकर भी खाते, जो आगे चलकर कबाब की शक्ल में बनकर भी आया है। तुर्की को कबाब का जनके भी कहा जाता है। कहते है कि दुनिया को कबाब से तुर्की ने ही रूबरू करवाया था। तुर्की में कबाब को कबूबा कहा जाता था।
इस कबाब का जिक्र 1377 में लिखी गई तु’र्की की यह किताब Kyssa-i- Yusuf में भी मिलता है। जो कि कबाब का इतिहास का सबसे पुराना साक्ष्य भी माना जाता है। वही ऑटोमन यात्रा की किताबो में कबाब का जिक्र भी मिलता है।