देश मे आए दिन हि’न्दू और मुस्लि’म की भाई’चारे की मिसाल देखने को मिलती है। जहां एक तरफ भाई’चारा की मिसाल कायम की जाती है तो दूसर तरफ इसकी पाल’ना भी होती है। एक ऐसी ही क’हानी हि’न्दू और मु’स्लिम की है।
यह कहानी 33 साल पहले शुरू हुई थी। इ’म्मामु’द्दीन और आ’यशा बानो दोनों ही मिया बी’बी है। यह दोनों ही मज’दूरी करते थे और एक हिन्दू के घर मे किरा’ए से रहते थे। उनके मकान मा’लिक चेन्द्र’भान की मौ’त हो गई थी और उनकी पत्नी गंगा देवी बे’सहारा हो गई। गं’गा की कोई औ’लाद भी नहीं थी।
इसके बाद उनको ल’कवा गि’र गया।इमामुदिन के बचपन मे ही सिर से उनकी माँ का साया उठ गया था। उन्हें गंगा देवी में ही अपनी माँ ही दिखाई दी। इन दोनों ने गंगा की खूब देख’भाल भी की है। इमा’मुद्दीन ने उनके इलाज के लिए अपनी र’कम को भी ख’र्च कर दिया।
आयशा भी उनकनह’लाती, क’पड़े प’हनाना, अपने ही हाथों से खा’ना भी खि’ला’ना, द’वा करना यह सब सा’री जि’म्मेदारी उनकी ही थी। ऐसे ही समय भी बीतता गया और इम’ममु’द्दीन और गं’गा दे’वी दूसरे घर मे शि’फ्ट हो गए। इमा’मुद्दीन से लोगो से पूछा तो यह सब करने की क्या जरूरत है?
उन्हों’ने कहा कि उसे मे’री नही बल्कि मुझे इस’की ज’रूरत है। गंगा का मौ’त भी हो गई है और उन्होंने इसे में भी इमम’मुद्दीन को हि’न्दू रीति’रिवा’जों से अंति’म सं’स्कार भी किया है।