जिंदगी में बार बार मिलो अस’फल’ताओं के बाद अखितर लोग यही सोचते है कि उनकी कि’स्मत में कुछ अच्छा होना भी लिखा है। वस यही सोच इंसान की तं’गहा’ली का भी वजह बन जाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि कि’स्मत छमे आजमाती है क्योकि वो हमे कोई बड़ा मौ’का देना चाहती हो।
कुछ इसी तरह किस्म’त ने ओबेरॉय ग्रुप के संस्थापक रॉय बहादुर मोहन सिंह को भी परखा है। मोहन सिंह बार बार ही किस्मत के हा’थों धो’खा खाने के बाद अपनी माँ के दिए सिर्फ 25 रुपए लेकर ही शि’मला पहुचे थे। उनका सफर यही से शूरी भी हुआ था।
मोहम सिंह के मन मे सिर्फ यही बात चल रही थी कि कैसे भिनकरके उनको नोकरी मिल जाए। जिससे उनकी माँ के सर से घर चलाने का बोझ भी ह’ट जाए। मोहन अपने चाचा की बात मानते हुए जूतों की फैक्ट्री में भी काम करने लगे। लकिन यह नोकरी उनके मुताबिक तो नही थी लकिन पैसे आ जाते थे।
उनकव कि’स्मत ने भी धोखा दे दिया और वह क’म्पनी बन्द हो गई।मोहन सिंह जब गांव वापस लौट तो सभी लोगो ने उनसे शादी करने का प्रस्ताव भी रखा।
मोहन सिंह के होने वाले सुसर ने उनके बेटी के रिश्ते के लिए है भी कह दिया। उनका ज्यादा वक्त सुसराल में ही बीता है।
कब वो अपने गांव आए तो वहां प्लेग बीमारी चल रही थी उनकी माँ ने उनसे कहा कि वो सुसराल ही चले जाए और वही काम भी ढूंढे। उनकी माँ में उनके हाथ मे 25 रुपए भी दिए थे। इसके बाद उनको एक अंग्रेज की होटल में भी रखा गया और वो एक दिन अपनी किस्मत से भी जीत गए।