जब आजादी की पहली रात को लाल किले से गूंजी थी उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की शहनाई, पढ़े स्टोरी

एक ऐसे शख्स जो बनारसी थे जो गंगा में वजू करके नमा’ज पढ़ते थे और स’रस्वती का स्म’रण करके श’हनाई की तान भी छोड़’ते थे। वो ही ऐसे स’न्त थे जिनकी शह’नाई की गूंज के साथ ही बाबा वि’श्वनाथ मं’दिर के कपा’ट भी खुलते थे। वो इस्ला’म के ऐसे परोपकार थे कि जो

अपने मजह’ब में संगी’त के हरा’म होने के सवाल पर हस कह देते थे क्या हुआ इ’स्ला’म मे अगर सं’गीत की मनाही है है तो कु’रान शरी’फ की शुरु’आत तो ऐसे भी बिस्मि’ल्ला से होता है।उस्ता’द बिस्मि’ल्ला’ह खा’न आधु’निक भारत के सन्त कबी’र थे जिनके लिए मं’दि’र मा’स्जिद

ustad bismillah khan biography

और हि’न्दू मुस’लमा’न का फ’र्क मि’ट गया था कहते है कि जब सन्त क’बीर का दे’हां’त हुआ तो हि’न्दू और मुस’लमा’न में उनके पा’र्थिव शरी’र के लिए झगड़ा हो गया था। उसी तरह जब उ’स्ताद बिस्मि’ल्लाह खा’न का देहात हुआ तो हिन्दू और मुस’लम’नो का हुजू’म उ’मड़ पड़ा।

शहना’ई की धुनो के बीच एक तरफ मु’सल’मान फाति’हा पढ़ रहे थे तो दूसरी तरफ हिन्दू सुंदर’कां’ड का पा’ठ भी कर रहे थे।जब हम आज असली भारत की तस्वीर को देख’ते है तो कुछ लोगो को इससे न’फर’त होती है। नफरत और बटवारे की सि’यासत हितकर से उधा’र लाई है। ‘

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हि’टल’र म’र गया लेकिन उससे उ’धार ली हुई न’फ’रत को कुछ लोग अपने मन मे पाले हुए भी घू’म रहे ह। हिंदु’स्तान की ध’रती में जित’ने गां’धी मौ’जूद है उतनी ही संख्या में अश’फा’क भी मौजूद है।

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