मोहम्मद अजहरुद्दीन का वो क्रिकेट रिकॉर्ड जो दुनिया में आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है

Mohammad Azharuddin: आज हम आपको भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन के उस रिकॉर्ड के बारें में बताने जा रहे हैं जिसे बीते 40 सालों में कोई क्रिकेटर नहीं तोड़ पाया है। इसके अलावा हम आपको इस आर्टिकल में मोहम्मद अज़हरुद्दीन के शुरुआत से लेकर अंत तक की भी कहानी बताएंगे। इस आर्टिकल को पढ़ने वाले सभी साथियों से गुजारिश करते हैं है कलाई के जादूगर मोहम्मद अज़हरुद्दीन के बारें में इस लेख को पूरा पढ़ें।

भारत के पूर्व कप्तान मोहम्मद अज़हरुद्दीन का रिकॉर्ड जो 1 फरवरी 1985 को बना था। आजतक भी बना हुसा है। इंग्लैंड टीम उस वक्त भारत के दौरे पर थी। साल 1984-85 की वो टेस्ट सीरीज जिसमें सुनील गावस्कर कप्तान थे। मुंबई के वानखेड़े ग्राउंड पर पहला मैच हुआ और इंडिया 8 विकेटी से जीत गई।

सबको उम्मीद थी कि इंडिया टीम 1-0 की लीड बनाकर भी रखेगी। अगला मैच दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में हुआ और यहां इंग्लेंड ने इंडिया को 8 विकेट से पटखनी दी थी।

टीम इंडिया के हारने के बाद बड़ा हंगामा हुआ। इसके बाद कपिल देव को अगले टेस्ट यानी कि कोलकाता के ईडन गार्डन से होंने वाले मैच से बाहर कर दिया गया। कपिल देव के साथ ही संदीप पाटिल को बाहर का रास्ता दिखाया गया। इनकी जगह पर चेतन शर्मा को जगह दी गई ।

इसके साथ ही 21 साल के डेब्यू करने वाले हैदराबाद के बल्लेबाज मोहम्मद अजहरुद्दीन को जगह दी गई। कोलकाता टेस्ट में रवि शास्त्री के साथ अजहरुद्दीन मैदान में थे। इन दोनों ने अपनो पारी को भी सम्भाल और पांचवे विकेट के लिए 241 रन भी जड़ दिए।

इसमें स्टाइलिश बल्लेबाज अजहर का शतक भी शामिल था। पहले ही मैच में 110 रन की पारी खेलकर इस खिलाड़ी ने अपनी पहचान को बना लिया था। मोहम्मद अजरुद्दीन आगे बढ़कर इंडिया टीम में बदलाव की एक मिसाल भी बने।

कोलकाता टेस्ट में उन्होंने डेब्यू करते हुए शतक मारा और अगले दो मैचों में भी अपने शतक को बरकरार भी रखा। यानी मोहम्मद अज़हरुद्दीन दुनिया के इकलौते ऐसे बल्लेबाज बने जिन्होंने अपने करियर के पहले तीन टेस्ट मैचों में तीन शानदार शतक मारे और इतिहास रच दिया।

आपको बता दे, मोहम्मद अज़हर का ये रिकॉर्ड 1 फरवरी 1985 को बना था और आजतक बना हुआ है।

कलाई तो बच गई पर जादू टूट गया

कहते थे कि पाकिस्तान के खिलाफ जान-बूझकर खराब खेलता है.

हिंदुस्तान में 13 के पहाड़े से भी पहले अगर कुछ जटिल समझ में आ जाता है, तो वो हैं क्रिकेट की कलाबाजी. घुटुअन चलने की तरह है, इसे देखना और सीखना. 90 का दशक शुरू हुआ था. न मस्जिद गिरी थी और न ही 16 भारतीय भाषाओं के जानकार मौनी बाबा पीएम बने थे.

नंबर 4 पर खेलने एक लड़का आता था. मूंछों और काली ताबीज वाला. चच्चू कहते थे. ये अज्जू है. कलाई में रोज सुबह छटांक भर मक्खन मलता है. और फिर कहीं की गेंद को कहीं भी मोड़ देता है. स्टेयरिंग की तरह.

फिर अज्जू और क्रिकेट हमनवा होते गए. स्टाइलिश अजहर, कोरी आंखों वाली नौशीन को तलाक देने वाला अजहर, मैच फिक्सिंग और सचिन से लड़ने वाला अजहर, संगीत बिजलानी सी सुंदर हीरोइन का पति सांवला सा अजहर… कितनी सिम्तें जुड़ती गईं.

अजहर को हमने 1996 के विश्व कप से देखना शुरु किया. खड़े कॉलर, सफेद हेलमेट और गले के बाहर लटकती ताबीज़ के साथ अजहर की अदा सबसे जुदा लगती. यह लंबा छरहरा खिलाड़ी जब मैदान पर उतरता तो उसमें एक तैराक की सी अदा होती जो छलांग मारने से ठीक पहले कंधे थोड़े उचकाने लगता है.

लल्लन ठीक ही कहते हैं कि अजहर की कलाई में जादू था. ऑफ स्टंप की जिस गेंद पर दूसरे बल्लेबाज कवर में शॉट खेलते उसे वे फ्लिक करके मिड ऑन या मिड विकेट का रास्ता दिखा देते.

क्रिकेट में जैसा आगाज अजहर का हुआ वैसा किसी बल्लेबाज का न उनके पहले हुआ न उनके बाद हो पाया. साल 1984 के दिसंबर का महीना था. अंग्रेज दल भारत के दौरे पर था. 21 साल का एक लड़का जो अभी तक SBI में क्लर्क की नौकरी करते हुए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, उसे मौका मिला. शुरुआती तीन टेस्ट मैचों में ही शतकों की तिकड़ी लगाकर उसने बवंडर बांध दिया. खेल के मैदान से जब वह नौकरी पर लौटा तो उसे मैनेजर बना दिया गया था.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शोक में डूबे देश को इस ‘बवंडर बालक’ (वंडर बॉय) ने उबर सकने की एक वजह दी. शायद यही वजह रही कि राजनीतिक पारी के लिए उन्होंने कांग्रेस को या कांग्रेस ने उन्हें चुना. खैर ये तो अवांतर प्रसंग-सा हो गया. क्षेपक भी कह सकते हैं. चलिए क्रिकेट पर लौटते हैं.

तो हुआ यूं कि जो अंग्रेज दुगुना लगान की फिराक में आए थे उनसे अजहर ने तीन शतक वसूल लिए. बात दिल्ली से लंदन तक पहुंच गई. वहां के क्रिकेट समीक्षक जितना इस बालक पर मोहित हुए उतना ही अंग्रेजों पर कुपित भी. जॉन वुडकॉक ने तो यहां तक कह दिया कि, “अंग्रेजों से अज़हर जैसी बल्लेबाजी की उम्मीद करना ही बेकार है. यह कुछ वैसे ही है जैसे किसी मरियल शिकारी कुत्ते से लंदन डर्बी जीतने की उम्मीद करना.”

mohammad azharuddin
Mohammad Azharuddin

अजहर की नफ़ासत भरी बल्लेबाजी और उनकी कलाइयों की तुलना गुंडप्पा विश्वनाथ, जहीर अब्बास और ग्रेग चैपल जैसे दिग्गजों से होने लगी. उस दौरे की याद करते हुए माइक गेटिंग कहते हैं, “जब भी वो काली चीज़ (ताबीज़ की तरफ इशारा) बाहर लटकती दिखती, हमें मालूम रहता कि हम मुश्किल में हैं.”

इंग्लैंड दौरे पर अजहरुद्दीन
इंग्लैंड दौरे पर अजहरुद्दीन

किसी भी नए खिलाड़ी के लिए अपने विपक्षियों से इससे बड़ी तारीफ और क्या मिल सकती थी!

खैर ये तो तब की बातें हैं जब हम पैदा ही हुए थे. ये सब लल्लन का आंखों देखा है जिसे हमने दर्ज़ भर कर लिया. इनाम आबिदी अमरोहवी बताते हैं कि अजहर कभी नमाज में नागा नहीं करते थे. तब अजहर एक ऐसे खिलाड़ी हुआ करते थे जिनके लिए खेल इबादत था. भारतीय क्रिकेट में मुश्किलों का दौर आया और 1990 में उन्हें कप्तानी सौंप दी गई.

गौरव का क्षण भी आया जब 1991 में अजहर को ‘विजडन क्रिकेटर ऑफ द ईयर’ चुना गया. यह वह दौर था जब उनकी लोकप्रियता तत्कालीन प्रधानमंत्री से भी ऊपर पर चली गई. वे और उनका खेल दोनों परवान चढ़ते गए.

मीडिया की आंख का तारा बन चुके अजहर इबादत और तिजारत का फर्क समझने लगे थे. 1981 में 800 रुपये महीने कमाने वाला अब लाखों में खेलने लगा था. जो कभी रोज की नमाज भी नागा न करता था अब जुमे की नमाज भी छोड़ने लगा. और यह लापरवाही उसके खेल में भी झलकने लगी थी.

मोहम्मद अज़हरुद्दीन, संगीता बिजलानी के संग
मोहम्मद अज़हरुद्दीन, संगीता बिजलानी के संग

1996 विश्वकप से अजहर का ढलान शुरु हो गया. उनकी जिंदगी में संगीता बिजलानी आ चुकी थीं. अब वे खेल से ज्यादा अपनी निजी जिंदगी के कारण सुर्खियों में रहने लगे. विश्वकप में उनके खराब प्रदर्शन का कुछ ठीकरा बिजलानी के सिर भी फोड़ा गया. हालांकि बिजलानी ने उनकी कलाइयां भले थामी हों पर बल्ला तो नहीं ही थामा होगा.

विश्वकप की हमारी यादों में अजहर एक बेहद चुस्त फुर्तीले फील्डर के तौर पर ही ज्यादा आते हैं. ईडन गार्डन पर हुए सेमीफाइनल में जिस तरह से उन्होंने चामिंडा वास को महज एक दिख रहे विकेट पर सीथे थ्रो करके रनआउट किया वह लाजवाब था. हालांकि दूसरी पारी में जिस अंदाज में उन्होंने अपना विकेट फेंका वह एक दूसरी ही कहानी बयान करता है.

विश्वकप सेमीफाइनल की शर्मनाक हार के बाद अजहर लगातार विवादों में बने रहे. 1996 का इंग्लैंड दौरा और अजहर-सिद्धू विवाद. इस दौरे पर सिद्धू अजहर की किसी बात पर रूठकर वापस आ गए. उनकी जगह गांगुली को मौका मिला. गांगुली ने लॉर्ड्स के मैदान पर अपने पहले ही टेस्ट में सैकड़ा जड़ दिया.

गांगुली का जिक्र इसलिए भी आया क्योंकि कहते हैं 1992 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्होंने कप्तान अजहर के जूते और पानी ढोने से इनकार कर दिया था. इसलिए टीम में एंट्री के लिए उन्हें सिद्धू के रूठने तक इंतजार करना पड़ा.

दौरे के बाद बोर्ड ने सिद्धू के इस रवैये की तह तक जाने की कोशिश की लेकिन सिद्धू ने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. जयवंत लेले ने अपनी किताब में इस वाकये का मजेदार अंदाज में जिक्र किया है. हुआ यूं कि सिद्धू ने जब कुछ भी बताने से इनकार कर दिया तो लेले ने किसी पंजाबी खिलाड़ी की मदद लेने की बात सोची.

शायद अपनी जुबान में वह सिद्धू के आहत मन को छू पाए! ऐसा ही हुआ. मोहिंदर अमरनाथ को यह जिम्मेदारी सौंपी गई. दिल्ली के एक होटल में फिर बैठक हुई लेकिन सिद्धू ने फिर बल्ला उठा दिया. सिद्धू के इस अड़ियल रवैये पर अमरनाथ खीझकर उठ गए. बैठक कुछ देर के लिए रोक दी गई.

सिद्धू कुछ सकुचाए कुछ घबराए उन्हें तकते रहे. फिर जो अमरनाथ ने कहा उससे सिद्धू को लग गया कि उनसे चूक हो गई. अमरनाथ बोले ‘माँ के …’ उत्तर भारत में भले ही गाली मानी जाती है लेकिन हैदराबाद की तरफ इसे प्यार जताने के तौर पर लिया जाता है. यहां तक कि महिलाएं भी इस जुमले का धड़ल्ले से प्रयोग करती हैं. इसका मतलब होता है ‘माँ के प्यारे बच्चे’.

इस वाकये की व्याख्या ने हरभजन और सायमंड्स के ‘मंकी’ से ‘मां की…’ कांड की विश्वसनीयता को बचा लिया. तब बोर्ड की लाज अमरनाथ ने बचाई थी अबकी संकटमोचन क्रिकेट के इकलौते ‘भारत रत्न’ बने.

खैर अजहर के खेल का स्तर लगातार गिरता रहा. हालांकि कभी कभी वे अच्छी बल्लेबाजी कर जाते लेकिन उसमें भी किसी को गलत साबित करने का भाव ज्यादा रहता.

ईडन गार्डन में 74 गेंदों पर बनाया गया शतक गवाह है जब उन्होंने दर्शकों की शाबाशी तक कुबूल नहीं की. अजहर में कुछ अकड़ तो आ ही गई थी. वो दौर भी आया जब दबी जुबान ये बातें होने लगीं कि अजहर पाकिस्तान के खिलाफ जानबूझकर खराब खेलने लगे हैं.

दिल्ली में एक बिजनेस मीटिंग में परवेज मुशर्रफ के साथ.
दिल्ली में एक बिजनेस मीटिंग में परवेज मुशर्रफ के साथ.

1999 के इंडिपेंडेंस कप का फाइनल था. ढाका में मैच चल रहा था और भारत को जीत के लिए 316 रन बनाने थे. सचिन, गांगुली और रॉबिन सिंह की पारियों ने भारत को मैच में बनाए रखा. अजहर जब क्रीज पर आए तब हालात काफी सामान्य थे. उन्हें केवल टिककर इक्का दुक्का भर रन ही बनाने थे. लेकिन सकलैन मुश्ताक के एक ओवर में एक फुल टॉस बॉल को उन्होंने मिड ऑन में आमिर सुहैल के हाथों में थमा दिया. वो गेंद आउट होने वाली नहीं थी लेकिन समय भी तो अपनी रंगत बदल रहा था. जो दर्शक आपके लिए ताली बजाते हैं वे गाल भी कम नहीं बजाते. अजहर भी अपवाद नहीं थे और मुसलमान तो थे ही. अजहर के बाद शायद ही किसी मुसलमान खिलाड़ी के लिए किसी ने सुना हो कि वह पाकिस्तान के खिलाफ खराब खेलेगा.

अजहर से कप्तानी लेकर सचिन को सौंप दी गई. आरोप तो ये भी है कि अजहर ने कप्तान के तौर पर कभी सचिन के साथ सहयोग नहीं किया. हालांकि अजहर इसको खारिज करते हुए मानते हैं कि सचिन में कप्तान के तौर पर वो काबिलियत थी ही नहीं. सचिन से अजहर की खटास की एक वजह वेस्टइंडीज के दौरे पर उनका लापरवाह रवैया भी था. सचिन चाहते थे कि अजहर को बाहर करके उन्हें सबक सिखाया जाए. साथ ही जडेजा, रॉबिन सिंह को भी समय रहते कड़े संदेश दे दिए जाएं.

1993. कोलकाता में वेस्टइंडीज को सीरीज में धूल चटाने के बाद अजहर, सचिन.
1993. कोलकाता में वेस्टइंडीज को सीरीज में धूल चटाने के बाद अजहर, सचिन.

अजहर को टीम से बाहर किया गया. वे फिर से टीम में आए. अपना आखिरी टेस्ट मैच उन्होंने अफ्रीका के खिलाफ खेला. इस मैच में उन्होंने शतक जड़ा, मानो वे कुछ साबित करने के लिए ही खेल रहे थे. लेकिन शतक पूरा होते ही एक बेहद बदसूरत शॉट खेलकर चलते बने. भारत वह मैच हार गया. खेल तो तब भी नफीस था लेकिन रवैया ले डूबा.

काबिले गौर है कि पहले और आखिरी टेस्ट में शतक लगाने का अनूठा रिकॉर्ड भी शायद उनके नाम ही रह जाए. काव्यात्मक न्याय ही कहा जाएगा कि अजहर का बेस्ट स्कोर 199 और टेस्ट मैचों का आंकड़ा 99 ही रह गया. एक गलत शॉट और एक गलत फैसले की कसक क्या होती है इसे अजहर से बेहतर भला कौन बता पाएगा.

मैच फिक्सिंग प्रकरण

मैच फिक्सिंग प्रकरण. अजहर के खिलाफ दबी जुबान में जो भी बातें होती रहीं हों लेकिन उन पर सबसे बड़ी गाज मैच फिक्सिंग के आरोपों ने गिराई. तहलका के स्टिंग ऑपरेशनों ने क्रिकेट जगत को हिला कर रख दिया. एक ऐसे ही स्टिंग में मुंबई के कमिश्नर राकेश मारिया अजहर पर गंभीर आरोप लगाते देखे गए.

फिक्सिंग के आरोपी अजहर का पुतला फूंका गया.
फिक्सिंग के आरोपी अजहर का पुतला फूंका गया.

उन्होंने अजहर को एक ऐसे इस्लामिक माफिया के तौर पर चिह्नित किया जो एक से सवा करोड़ रुपयों में मैच फिक्स कर सकता था. अजय जडेजा, नयन मोंगिया और दो तीन दूसरे खिलाड़ियों को साथ लेकर मैच का नतीजा तय हो जाता. हर खिलाड़ी को 20 से 25 लाख मिलने की बात होती.

ऐसे ही आरोप मनोज प्रभाकर ने कपिल पर भी लगाए. अफ्रीकी कप्तान हैंसी क्रोनिए ने भी स्वीकार किया कि अजहर ने उन्हें किसी संजीव चावला नाम के बुकी से मिलवाया था. किंग कमीशन बैठा. जांच हुई. क्रोनिए विमान दुर्घटना में मारे गए. साबित भले कुछ हुआ या न हुआ हो लेकिन खेल और इन खिलाड़ियों को लेकर दर्शकों का नजरिया तो धूमिल हो ही गया.

mohammad azharuddin

जिस खेल की पहचान कभी पैशन से हुआ करती थी वह पैसों से होने लगी. साल 2000 में अजहर पर बीसीसीआई और आईसीसी ने आजीवन प्रतिबंध लगा दिया. अजहर ने फैसले को अदालत में चुनौती दी और आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट ने उन्हें 2006 में राहत प्रदान की.

कुछ अंतर्मुखी सा यह बंदा अपनी बातों से नहीं बल्कि अदा से जादू फूंकता था. कुछ बात उसमें तो थी ही कि पटौदी के बाद उस पर ग्लैमर जगत इतना मोहित था. ये और बात है कि ग्लैमर की चकाचौंध ने अजहर को जितना दिया उससे ज्यादा ले लिया. जितना विवादित जीवन अजहर ने जिया त्रासद भी उससे कम न रहा.

उनकी जिंदगी कुछ कुछ ग्रीक त्रासदी के नायकों की सी रही जो रहे तो मूलतः भले लेकिन महज एक गलती ने उनका गुरूर छीन लिया. बिजलानी से अलग होने के बाद नगमा से लेकर ज्वाला गुट्टा तक का नाम उनसे जुड़ा लेकिन आज के हालात सबके सामने है. निजी जिंदगी के इन झंझावातों से जूझते हुए एक जवान बेटे को खोने का गम भी उनके हिस्से आया.

बेटे अयाजुद्दीन के साथ अजहर, अयाज की बाइक एक्सिडेंट में मौत हो गई थी.
बेटे अयाजुद्दीन के साथ अजहर, अयाज की बाइक एक्सिडेंट में मौत हो गई थी.

हाल ही में जब सिद्धू को एक गंभीर बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती करना पड़ा तब अजहर उनसे मिलने आए. 1996 की कड़वी यादों को धोने का इससे बेहतर मौका और क्या हो सकता था.

अजहर जब अस्पताल पहुंचे तो कर्मचारियों ने उनका रिश्ता जानना चाहा. अजहर बोले कह तो उसका भाई मिलने आया है. ये हालात और बातें ही अजहर को मानवीय बेहद मानवीय बनाते हैं.

19वीं सदी के आखिरी दशक ने एक चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला. अव्वल अव्वल के तीन शतक और दो बीवियों वाले अजहर को महज एक गलत कदम ने अर्श से फर्श पर ला छोड़ा.

उनकी जिंदगी में आए मोड़ और उतार चढ़ाव वे किसी रोमांचक किस्सागोई का सा जादुई असर रखते हैं. मीडिया ने उनकी जिंदगी के हर पहलू को जमकर भुनाया. एकता कपूर ने जब उनके जीवन पर फिल्म बनाने की सोची तो उन्हें मनाने के लिए तीस से ज्यादा बार मिलना पड़ा. अज़हर फ़िल्म 2016 में आई.

यह एक बानगी भर है कि कभी दिल में बसने वाले कैसे यादों से भी दूर होते जाते हैं. कहना न होगा अदालत ने कलाई तो बचा ली पर जादू टूट गया.

लेखक : इमरान खान & अजीत कुमार तिवारी