केरल के पनरामन पंचायत के एकोम को लोग म’रा हुआ गांव भी कहते थे। यही के रहने वाले रफीक बताते है कि वह इस बात से भी है’रा’न थे कि इस बदलती दुनिया में भी उनके गांव में समय से कैसे खड़ा भी कर दिया। यह गांव बाहर की दुनिया से भी पूरी तरह से बेखबर था।
एक चाय बेचने वाले के बेटे रफीक ने बहुत सी परेशानियों के बीच अपना बचपन भी बिताया लेकिन उन्होंने इस तं’ग’हा’ली में भी ह’मेशा बेहतर जिंदगी का सप’ना भी देखा। उन्होंने चाय भी बेची, लोगो की गाड़ियों को साफ भी किया और होटल में भी काम भी किया है ।इन सबके बीच उन्होंने
अपनी पढ़ाई जारी भी रखी लेकिनउनकी जीवनी में ऐसा समय भी आया जब उन्होंने पढाई रुक गई। इसी बीच भी रफीक किताबे पढ़ते रहे और इसी यरह उन्होंने अवनी पीएचडी की पढ़ाई को पूरा किया। रफीक महज 19 साल की उम्र में अपने दोस्त के साथ मैसूर भी चले गए।
इसके बाद वहां जाकर चाय बेचने का कम भी शुरु किया। तब वह बीएससी कर रहे थे। इसी तरह उन्होनेअपनी पढाई को जारी रखा। रफीक बताते है कि उनकी घर की आ’र्थिक स्थि’ति ख’राब होने की वजह से वह मल्लपुरम
जिले के वनदुर चले गए और वहां जाकर उन्होंनेबस स्टैंड के एक होटल में नोकरीं भी की है। उन्होंने अपनी परिस्थितियों से लड़ते हुए वह अ’सिस्टेंट प्रो’फेसर की पद पर भी ‘तै’नात हुए।