जब भोपाल के नवाब हमीदुल्लाह ने कराची में खोल दी थीं बैंक ऑफ भोपाल शाखा, आज़ादी के बाद मुस्लिम रियासतों को लेकर …..

15 अगस्त 1947 को मिली आजा’दी के बाद तक हमारा देश भारत करीब 565 देशी रि’यासतों में बंटा हुआ था। ये सभी रि’यासते स्व’तंत्र शा’सन की तैयारी में बैठी थी। हैदरा’बाद, जूना’गढ़, भोपा’ल और क’श्मी’र को छो’ड़कर शेष 562 रि’या’सतों ने भा’रत सं’घ में शा’मिल होने की स्वीकृ’ती दे दी थी।

भार’त में शामिल’ नही होने वाले रिया’सतों में भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाभी थे। पा’कि’स्तान के प्रति उनका झुकाव किसी से छिपा नही था। ऐसे में सदर पटेल ने भोपाल पर पूरी नजर रखने के लिए इसे राजधानी बनाने का फैसला किया और नेहरू जी ने इस पर सहमति भी प्राप्त कर ली थी।

हमीदुल्ला भोपाल के नवाब थे। दीपक तिवारी की किताब राजनीतिक नामा में बताया गया है कि ह’मीदुल्लाह खा के इरा’दे कितने ज्यादा ख’त’रनाक भी थे। साल 1948 में उन्होंने बैंक ऑफ भोपाल की एक शाखा कराची में खोल दी थी। वह जनता का सारा धन लेकर वहां चले गए और यहां बैंक को दिवाला कर दिया। यह बात कोई सत्यता का प्रमाण नहीं मिलता है।

इस किताब में आगे बताया गया है कि साल 1944 से ही हमीदुल्लाह चेम्बर और प्रिंसेस के चांसलर थे। वो कांग्रेस के भी वि’रो’धी थे। यह भी कहा जाता है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद वायसराय माउंटबेटन के दूसरे सबसे अच्छे मित्र भोपाल के नवाब भी थे। हमीदुल्ला पा’किस्ता’न के प्रधानमंत्री भी बनने पहुँचे थे लेकिन उनसे जिम्मे’दारी ले ली गई।

पा’कि’स्तान क्रोनि’कल के सम्पादक अकील अब्बास जफरी ने अपनी किताब में लिखा था कि क’राची में खुफि’या पु’लिस के कार्य’लय पर क’ब छा’पा मा’रा गया तो पता चला कि स’रकार के उच्च अधि’कारियों के फो’न रिकार्ड किए जाते थे। जब चुना’व को रो’कने पर भी वि’चार होने लगा।

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